पार्थो सिल। उत्तराखंड के चंद IAS में से एक अधिकारी ऐसे है जिनके नाम का अर्थ जानने के लिए मैने विश्व प्रसिद्ध गूगल का सहारा लिया। जब गूगल ने उस चर्चित आईएएस के नाम का अर्थ प्रदर्शित किया तो हंसी सी फूट पड़ी, क्योंकि जितना मैंने उसे जाना या पढ़ा है उसमें गूगल ने उसे 100 प्रतिशत सही साबित किया।
अब बात मुद्दे की करते है, उत्तराखंड के कुछ आईएएस ने इस प्रदेश के एक शासनादेश 2588/20 नवंबर/2021 की ऐसी धज्जियाँ उड़ाई कि अज्ञानता भी शरमा कर मुँह छिपाने के लिए जगह ढूंढ रही है।
इस IAS महोदयो ने राज्य संपत्ति विभाग के एक राजपत्रित अधिकारी के पुत्र और स्वयं उसके द्वारा इस राज्य में बनाये गए फ़र्ज़ी तरीके से स्थाई निवास प्रमाण पत्र को वैध बता दिया और शासन के राज्य संपत्ति विभाग के एक अधिकारी मुन्ना प्रसाद और उसके पुत्र के फ़र्ज़ी तरीको से बनाये गए स्थाई निवास प्रमाण पत्र को जांच रिपोर्ट में सही ठहरा दिया गया।
उत्तराखंड राज्य में स्थाई निवास प्रमाण पत्र उन्ही का बनता है जिनको इस राज्य में निवास करते हुए 15 वर्ष हो गए हो, इस राज्य के सरकारी, अर्धसरकारी अधिकारियों एवं कार्मिको के लिए इस शासनादेश में स्थाई निवास बनवाने के लिए ये प्रावधान है कि वो इस राज्य के स्थाई कार्मिक हो और उनका स्थानांतरण राज्य के बाहर ना होता हो।
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जरूर पढ़ें…..ये राज्य कर्मचारी/ अधिकारियों के लिए नियम शासनादेश में :- शासनादेश 2588/20 नवंबर/2001 के पृष्ठ संख्या 6 पर अंकित नियम….
(4) बिंदु (2)में की गई व्यवस्था के अपवाद स्वरूपं विशिष्ट प्रयोजनों के लिए ऐसे व्यक्तियों को भी उत्तरांचल का संभाविक निवासी (Bonafide Residents) माना जायेगा,जो राज्य सरकार अथवा उसके अधीन स्थापित किसी राजकीय/अर्धशासकीय संस्था में नियमित पदों पर नियमित रूप से नियुक्त हो, केन्द्र सरकार अथवा केन्द्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में नियमित पदों पर नियमित रूप से उत्तरांचल में कार्यरत ऐसे कर्मी, जिनकी सेवायें उत्तरांचल से बाहर अस्थानान्तरणीय है, भी इस श्रेणी में शामिल होगें, इस आषय का समुचित साक्ष्य आवेदक द्वारा उपलब्ध कराया जाना आवश्यक होगा।
(5) शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के संदर्भ में स्थाई निवास प्रमाण पत्र की आवश्यकता उसी दशा में होगी जहां किसी भी पाठ्यक्रम विशेष के लिए उत्तरांचल के निवासियों के लिए सीटें/कोटा आरक्षित हो. इस संबंध में संबंधित विभाग द्वारा समय-समय पर यथा आवश्यकता आदेश अलग से निर्गत किये जायेंगे।
- मुझसे यह भी कहने की अपेक्षा की गयी है कि सामान्यता इस प्रकार के प्रमाणपत्रों की आवश्यकता कतिपय संगठनों, यथा सेना व अर्धसैनिक बलों में राज्यों के लिए निर्धारित कोटे के आधार पर भर्ती के क्रम में तथा कुछ शिक्षण संस्थाओं/विशिष्ट पाठ्यक्रमों हेतु राज्य के लिए निर्धारित कोटे के संदर्भ में पड़ती है, इसके अतिरिक्त कतिपय सेवाओं यथा सेना,अर्धसैनिक बलों व पुलिस में विशेष वर्गों के व्यक्तियों के लिए शारीरिक अर्हताओं में छूट की व्यवस्था की गयी है जिसके लिए संबंधित विभागों द्वारा निर्धारित प्रमाण पत्र पूर्ववत चल रही प्रकिया के अनुसार जारी किये जाते रहेंगे और इन निर्देशों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- 3.उपरोक्त निर्देशों के अनुसार स्थाई निवास प्रमाण पत्र संलग्न प्रारूप में आवेदन पत्र प्राप्त होने पर तथा इसमें उल्लिखित बिन्दुओं पर भली भांति जांच के उपरान्त संलग्न-2 में इंगित प्रारूप में निर्गत किया जायेगा। अनुरोध है कि कृपया स्थाई निवास प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में उपरोक्त निर्देशों एवं प्रक्रियाओं का अनुपालन सुनिश्चित किया जाये।
इस शासनादेश में कही अंकित नही है कि इस राज्य के सरकारी गेस्ट हाउस के पते पर इस राज्य के अधिकारी/ कार्मिक या नेतागण स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनवा सकते है।
उत्तराखंड में गलत तरीके से बना स्थाई निवास प्रमाण पत्र का फोटो:-
इस विभाग में कार्यरत एनेक्सी के व्यवस्थाधिकारी मुन्ना प्रसाद जो कि इस राज्य की सेवा में 2005 में उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड से आये उन्होंने अपने पुत्र शिवांकु कुमार का 2015 उत्तर प्रदेश से निवास प्रमाण पत्र व जाति प्रमाण पत्र वही के सरकारी निवास के पते 29 ओसीआर विधान सभा उत्तर प्रदेश लखनऊ के नाम से बनवाया और 2016 में उत्तराखंड से स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनवाया।
अब उत्तराखंड के राज्य संपत्ति विभाग के सचिव रमेश कुमार सुधांशु को जब इसी विभाग के मुख्यव्यवस्थाधिकारी ने इसी के संदर्भ में शिकायत प्रेषित की और कैंट थाने में शिकायत दर्ज करवाई, तो सचिव साहब ने तुरंत संदेह के दायरे में आने वाले अधिकारी मुन्ना प्रसाद के पक्ष में आकर खुद विभाग की नियमावली के विपरीत जाकर शिकायतकर्ता मुख्यव्यवस्थाधिकारी का स्थानांतरण कार्यहित और प्रशासनिक आधार पर कौसानी कर देते है और संदेह के दायरे में आने वाले मुन्ना प्रसाद के फ़र्ज़ी तरीके से बनाये गए स्थाई निवास प्रमाण पत्र को शासनादेश का हवाला देकर व वैध बता कर जांच खत्म कर एक भ्रष्ट अधिकारी को क्लीन चिट दे देते है। इस प्रकरण पर जांच भी वो अधिकारी करते है जो एनएच 74 के घोटाले मे खुद फंसे हुये है। अब विभाग के सचिव सुधांशु को इस प्रकरण की जांच करने वाले तत्कालीन सचिव सामान्य प्रशासन IAS पंकज पांडे ने गुमराह किया या फिर अपर सचिव सामान्य प्रशासन ने, ये सचिव महोदय खुद ही जानते होंगे।
जांच की आख्या का फोटो:-
सूचना के अधिकार में प्राप्त दस्तावेज के आधार पर इस विभाग के कई राजपत्रित अधिकारी और कार्मिको की फ़र्ज़ी डिग्री और नियुक्ति को लेकर खोजी नारद द्वारा पहले भी कई शिकायतें शासन के मुख्य सचिव और इस विभाग के सचिव से की गई एवं प्रत्यावेदन भी दिए गए पर एक वर्ष बीत जाने के बावजूद भी इन भ्रष्ट अधिकारियों के सरपरस्त सचिव के कानों में जूं भी ना रेंगी क्योंकि इनको अपने जैसे ही अधीनस्थ अधिकारी और कार्मिक पसंद आते है।
अब अगर इन सचिव महोदय की जांच आख्या को आधार माने तो उत्तराखंड राज्य में बाहरी राज्य से आये अधिकारियों/कार्मिको का अब मात्र 10 वर्ष में स्थाई निवास बन सकेगा वो भी सरकारी गेस्ट हाउस या मुख्यमंत्री आवास के पते पर भी। इस विभाग से सूचना के अधिकार में प्राप्त दस्तावेज़ों के आधार पर खोजी नारद प्रामाणिक तौर पर कह सकता है कि इस विभाग के कुछ राजपत्रित अधिकारी जो उत्तर प्रदेश से इस राज्य को आवंटित हुए थे, (जो उत्तर प्रदेश में अस्थायी कार्मिक थे) उनका नियुक्ति पत्र भी संदेह के दायरे में है क्योंकि उस पर हस्ताक्षर करने वाली जगह पर फ्लूड लगा कर सबंधित अधिकारी ने हस्ताक्षर किये है।
उतर प्रदेश में कार्यरत कुछ अस्थायी कार्मिक जो इस राज्य को आवंटित हुए उनकी सिर्फ पासबुक आयी, बिना पत्रावली के उत्तराखंड राज्य ने इनको कैसे अपना कार्मिक मान लिया?
इनमें से आज कुछ कार्मिक उत्तराखंड राज्य में राजपत्रित अधिकारी बन गए और उनकी शैक्षणिक योग्यताओ की सत्यता से संबंधित टीप इस विभाग में धारित अभिलेखों में उपलब्ध क्यों नही है?
जिन अधिकारियों और कार्मिको की शैक्षणिक योग्यताओं की सत्यता इस विभाग के पास नही है उन अधिकारियों के प्रमोशन अभी तक कैसे हुए और इनको प्रमोशन देने वाले अधिकारियों ने डीपीसी करते समय कौन से दस्तावेज चेक किये थे?
इस विभाग में ऐसे अजूबे दस्तावेज़ मिले है जिन्हें देखकर अँधे व्यकि की आखों की रौशनी भी लौट आये.. क्योंकि इस विभाग में कार्यरत अधिकारियों के शैक्षिक प्रमाण पत्रों का विश्लेषण प्रथम दृष्टया करने पर संदेह उत्पन्न हो जाता है..
एक अधिकारी ऐसे है जिनकी 1983 की मार्क शीट कम्प्यूटर से बनी है अब क्या 1983 में कम्प्यूटर आ गया था क्या?
एक अधिकारी ऐसे है जिनके हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट के प्रमाण पत्र पहले जारी हुए और अंक पत्र बाद में जो कि अपने आप मे हास्यास्पद है।
एक अधिकारी ऐसे है जिनके हाई स्कूल की अंक पत्र और प्रमाण पत्र टाइपराइटर से प्रिंट है और इंटरमीडिएट के प्रमाण पत्र हस्तलिखित है। इनकी डिग्री भी अजीब है बीएसई एग्रीकल्चर के अंकपत्र में अलग यूनिवर्सिटी है और प्रमाण पत्र में अलग यूनिवर्सिटी अंकित है।
एक अधिकारी ने तो हद कर दी उन्होंने 1994 में मात्र 2 महीने में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर लिया और वो इस राज्य के अधिकारी बनकर जो उत्तर प्रदेश में बने इस राज्य के गेस्ट हाउस में तैनात है।
ऐसे ही कितने अधिकारी और कार्मिक इस विभाग में जिनकी शिकायत इस विभाग के सचिव महोदय से की गई।
क्या स्थाई निवास प्रमाण पत्र पर बदल जाएंगे नियम?
उत्तराखंड राज्य में भू कानून की मांग पर भी कई राजनैतिक दल विरोध प्रदर्शन कर रहे है, जिसके चलते शासन मे व राजनैतिक गलियारो में घमासान चल रहा है। अब फर्जी डोमिसाईल बनाने के प्रकरण पर सामान्य प्रशासन सचिव की जांच की रिपोर्ट पर भी बड़े राजनैतिक विवाद की आशंका है। क्योकि इस विवाद का आधार तत्कालीन IAS पंकज पांडे की जांच रिपोर्ट है।
इस विभाग मे बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारी और कार्मिको ने तो अपने स्थानांतरण पर तो जैसे स्थानदेश ले रखा है 10 वर्षो से एक ही जगह पर कुंडली मारे बैठे है क्यूकि इस विभाग मे इनके लिए स्थानांतरण नियमावली लागू नहीं होती। जैसे ही इनके गेस्ट हाउस मे कोई आलाअधिकारी ठहरने पहुंचता है तो उसको घेरकर अपने आपको दबा कुचला दर्शाकर, भावनाओ और हर तरीके की आवभगत से उसे जकड़ लेते है।
राज्य संपत्ति विभाग के सचिव रमेश सुधांशु भी इसी तरह के विवादो में फँसते रहे है। उत्तराखंड की चर्चित एक पत्रिका में इनकी आधुनिक सोच को प्रदर्शित करता छायाचित्र भी छपा था, या फिर राज्य संपत्ति विभाग के भ्रष्टाचार और फ़र्ज़ी नियुक्ति, डिग्री से संबंधित मामले हो या फिर नवनिर्मित आस्ट्रेलियन तकनीक से बनी ध्वस्त सड़क से जुड़े हुए मामले हो, पर इन शासन में बैठे ऐसे अधिकारियों पर कोई कार्यवाही ना होना ये दर्शाता है कि इनकी भ्रष्ट आर्थिकी जड़े कितनी मजबूत है, जिनके सामने इस राज्य के पक्ष और विपक्ष के नेता भी गांधी जी तीन बंदरो के माफिक नजर आते है।
इस राज्य की कमान जबसे युवा और राजनीति की बखूबी परख रखने वाले पुष्कर सिंह धामी के पास आई है तब से ऐसे अधिकारी अपनी पैरों के नीचे भूकंप जैसा महसूस कर रहे है। अब धामी जी के भूकंप का रिएक्टर स्केल लेबल 4.1 होगा या 2022 में 5.5 होगा, उसका मापन आने वाले समय पर निर्भर करेगा।
एक बात तो जरूर है कि इस राज्य की जनता ऐसे अधिकारियों का अनुसरण करना चाहेगी या इस राज्य के युवा मुख्यमंत्री धामी जी का, ये फैसला भी समय कर ही लेगा।
इस राज्य में ऐसे रसूखदार अधिकारी पर क्या कोई कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जाएगी या नही? ये भी पक्ष और विपक्ष के नेता एवं उच्च आलाधिकारी तय करेंगे। जनता तो सिर्फ नेता को वोट देना जानती है पर उस वोट का हिसाब क्या सिर्फ चंद भ्रष्ट अधिकारियों की अकूत संपदा तक ही सीमित रहेगा क्या?