यहां पर कुछ लोग शिव रूप में भगवान नारायण की पूजा करते हैं और कुछ लोग विष्णु के रूप में भगवान नारायण की पूजा करते हिमालय का अद्भुत मंदिरों में से एक है चारों और हिमालय के हिम श्रृंग के बीच विद्यमान है।
यहां पर भगवान विष्णु के साथ महालक्ष्मी, नारद ,उद्धव, एवं घंटाकरण, कुबेर, वन देवियां की मूर्ति विराजमान यहां पर कस्तूरी शैली में ऊंचा ताप वाला विष्णु मंदिर उत्तराखंड का एक मात्र मंदिर है।
जो 12000 फीट की ऊंचाई पर विष्णु मंदिर है यहां पर कत्यूरी शैली यह मंदिर 6 से 8 फीट लंबी शिलाये मंदिर पर लगी है।
मंदिर के ऊपर गुंबदाकार बनाया गया है। इसका ध्वजा वाला हिसाब पहले गिर गया था अब कुछ लोगों ने इसे मरो मत कर पुनः स्थापित कर दिया है ऐसा माना जाता है।
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एक नमक नेपाली मूल के संत ने यह कार्य किया। यह मंदिर आज भी पंच केदार के कल्पेश्वर धाम से लगभग 12 किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित है।
पहले यहां मात्र वर्ष भर में एक दिन रक्षाबंधन के दिन पूजा का विधान था और भगवान का वामन अवतार का स्वरूप यहां दिखता है।
यहां पर आज भी रक्षाबंधन के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है यह प्रकृति का बड़ा ही सुंदरमय स्थानों में से एक है अब यहां पर कलगोठ गांव के लोग इस मंदिर में अव कुछ समय से यह जानकारी प्राप्त हो रही है की बद्रीनाथ के कपाट खुलने और बंद करने के समय भी यहां के कपाट बंद किए जाएंगे।
यहां हर वर्ष घुमंतू ट्रैकिंग प्रेमी यात्रा हेतु यहां पहुंचते हैं और प्रकृति का आनंद लेते हैं यहां से एक महत्वपूर्ण रास्ता नंदी कुंड होते हुए मध्यमहेश्वर पहुंचता है कुछ पर्यटक लोग इस मार्ग से भी यात्रा करते हैं।
यात्रियों को यात्रा करने के लिए अब कुछ सुविधा हो चुकी है पंच केदार के कल्पेश्वर एवं ध्यान बद्री उर्गम घाटी में ऋषिकेश से सीधा कार बस जिप्सी से पहुंचा जा सकता है।
यहां रुकने के लिए होमस्टे की पर्याप्त व्यवस्था हैऔर यहां से जीप से कलगोट पहुंचा जा सकता है।
यहां से लगभग 7 से 8 किलोमीटर पैदल दूरी की से यात्रा की जा सकते हैं।
बंसी नारायण की यात्रा के लिए यात्रियों को जरूर गाइड पोर्टर लेना चाहिए क्योंकि यह रास्ता थोड़ा जंगल वाला है।
इस मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य आज भी सुनाई देते हैं गोपेश्वर में नेपाली मूल के राजबहादुर सब्जी व्यापारी ने बताया कि एक बार हम बंसीनाराण की यात्रा कर रहे थे ।
हमें जंगल में बंसी की धुन सुनाई दी हमने काफी खोज खबर की किसी तरह का पता नहीं चल पाया बंसीनाराय आज भी रहस्यों से भरा पड़ा है।
मंदिर में भोग चढ़ावा मेवा का रात्रि में उनकी टीम के द्वारा लगाए गया किंतु सुबह को पूरा प्रसाद गायब हो चुका था।
इस तरह बंसी नारायण के कई किस्से हैं यदि आप भी इस स्थान की यात्रा करना चाहते हैं जरूर आइए प्रकृति का आनंद लीजिए।