मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से फ्री राशन भी संकट खड़ा हो गया है।
यही नहीं, मोबाइन क्नेक्टिविटी नहीं होने की वजह से छात्रों को भी परेशानी हो रही है।
नैनीताल जिले में अभी भी 40 गांव ऐसे हैं, जहां मोबाइल नेटवर्क नहीं पहुंच पाया है।
सरकार की पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ने की योजना भी यहां आकर दम तोड़ती नजर आती है।
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संचार क्रांति ने पूरी दुनिया को एक मुट्ठी में बंद कर दिया है, लेकिन नैनीताल जिले के लोगों के लिए आज भी मोबाइल नेटवर्क पाना बड़ी चुनौती है।
खासकर पहाड़ी इलाकों में बड़ी समस्या है।
जहां लोग इंटरनेट इस्तेमाल करना तो दूर अपने परिजनों से मोबाइल पर बात तक करने के लिए भी तरस रहे हैं।
ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई, कारोबार, सूचनाओं का आदान प्रदान, सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना मुश्किल है।
स्थिति यह है कि आज भी राशन वितरण की ऑनलाइन व्यवस्था गांवों में शुरू नहीं हो सकी है।
मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से कई इलाकों में उपभोक्ता गांव से दूर जाकर राशन लाते हैं।
आधार कार्ड जैसा मामूली अपडेट करवाने के लिए भी ग्रामीणों को कई किलोमीटर तक का सफर करना पड़ता है।
465 गांव प्रदेश में बिना मोबाइल नेटवर्क के: उत्तराखंड के 465 गांवों में आज भी मोबाइल नेटवर्क नहीं आता।
पर राज्य सरकार 10वीं व 12वीं के 14 बच्चों को पढ़ाई के लिए टैब बांट रही है।
आखिर यह टैब बिना इंटरनेट के किस काम आएंगे।
इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं।
निजी कंपनियां नहीं लगातीं टावर:
पहाड़ के ग्रामीण इलाकों में निजी टेलीकॉम कंपनियां टावर नहीं लगाती हैं।
दरअसल पहाड़ी इलाके में अच्छा नेटवर्क देने के लिए ज्यादा टावर लगाने पड़ते हैं।
निजी कंपनियों के लिए यह मुनाफे का सौदा नहीं होता। इससे निजी टावर काफी कम हैं।
आसान काम भी बेहद मुश्किल:
संचार सुविधा न होने के कारण ग्रामीणों को छोटे-छोटे काम भी मुशिकल हो जाते हैं।
स्थानीय ग्रामीण कुलदीप बिष्ट के अनुसार संचार सुविधा नहीं होने का दंश वाहन चालक भी झेल रहे हैं।
लोग फोन पर ही सीट बुक करा लेते हैं। हम इस व्यवस्था से महरूम हैं।
ग्रामीण क्षेत्र के मोबाइल नेटवर्क में दिक्कत है।
इसके लिए लगातार काम किए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार की योजना के तहत गांव चिह्नित किए गए हैं।
कुछ कंपनियों को टावर लगाने के लिए भी आमंत्रित किया जा रहा है।
जल्द ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।