उत्तराखंड ड्रोन नीति काॅरिडोर : उत्तराखंड में ड्रोन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। इसके लिए प्रदेश में ड्रोन एप्लिकेशन एवं रिसर्च सेंटर (डार्क) की स्थापना की गई , यह केंद्र ड्रोन उपयोग और अनुसंधान स्थापित करने, आर्ट ड्रोन के उपयोग, विमान रहित प्रौद्योगिकी की उन्नति और ड्रोन संचालकों को तकनीकी युक्त प्रशिक्षण कराने की व्यवस्था कर रहा है। डार्क के सहयोग से इस समय बहुत कार्य चल रहे हैं। इसके तहत राज्य में आपदा प्रबंधन के लिए ड्रोन का प्रयोग किया जा रहा है। बीते वर्ष चार धाम यात्रा के संचालन में ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।
इसके परिणाम काफी अच्छे रहे। ड्रोन के जरिये प्रदेश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में ब्लड सैंपल एकत्र करने और दवाएं भेजने का कार्य सफलतापूर्वक किया जा चुका है। हांलाकि अब खबर तो ये है कि प्रदेश में ड्रोन को बढ़ावा देने के लिए ड्रोन नीति तो बन गई। विभिन्न विभागों में ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर भी सूचना प्रौद्योगिकी विकास एजेंसी (आईटीडीए) ने कंपनियों को सूचीबद्ध कर दिया लेकिन ड्रोन काॅरिडोर नहीं बन पाए हैं। केवल उत्तरकाशी का एक ही काॅरिडोर वर्तमान में संचालित है।
ड्रोन काॅरिडोर बनाने के लिए नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) से अनुमति मिलने के बाद राज्य में ड्रोन के कॉरिडोर तय होने थे। सभी जिलों में ड्रोन संचालन के लिए जो कॉरिडोर बनेंगे उन्हें आपस में लिंक किया जाना था। इसके बाद प्रदेश में ड्रोन के समर्पित रास्तों का पूरा नेटवर्क तैयार होना था। ड्रोन कॉरिडोर बनाने के पीछे एक मकसद यह भी था कि इससे ऐसे रास्ते तैयार किए जाएं जो हवाई सेवाओं को बाधित न करें।
करीब दो साल से ड्रोन काॅरिडोर की दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि सीमांत राज्य होने के नाते जगह-जगह प्रतिबंधित क्षेत्र हैं। उन क्षेत्रों में बिना सेना की अनुमति ड्रोन का संचालन नहीं किया जा सकता है। वर्तमान में केवल देहरादून से उत्तरकाशी का ड्रोन काॅरिडोर ही चिह्नित है। इस काॅरिडोर के माध्यम से एम्स ऋषिकेश भी ड्रोन से स्वास्थ्य सुविधाएं दे चुका है।