वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता हैकि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है। पुराणों में इस वृक्ष के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। इसके अलावा कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिजात के वृक्ष को ही कल्पवृक्ष कहा जाता है। पद्मपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्प वृक्ष है, जबकि कुछ का मानना है यह सही नहीं है। पुराण तो बहुत बाद में लिखे गए।
दरअसल, कल्पवृक्ष को कल्पवृक्ष इसलिए कहा जाता है कि इसकी उम्र एक कल्प बताई गई है। एक कल्प 14 मन्वंतर का होता है और एक मन्वंतर लगभग 30,84,48,000 वर्ष का होता है। इसका मतलब कल्प वृक्ष प्रलयकाल में भी जिंदा रहता है।पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना ‘सुरकानन वन’ (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी। माना जाता है कि धरती के किसी न किसी कोने में आज भी कल्पवृक्ष कहीं न कहीं जरूर होगा। हो सकता है कि यह हिमालय के किसी दुर्गभ स्थान पर मिले।
हिन्दु ग्रंथो एवं पुराणो की एक कथानुसार जब देवताओं एवं दानवों के बीच शेषनाग को लेकर समुद्र का मंथन किया गया था। तब समुद्र मंथन के दौरान अनेको प्रकार के ऐसे सजीव एवं निर्जीव सामान निकले। इस मंथन में सबसे अधिक चर्चित में कामधेनू गाय एवं कल्पवृक्ष का जिक्र होता है। कल्पवृक्ष को कल्पतरु भी कहा जाता है। मानवीय एवं संस्कारिक जीवन में इस दिव्य पेड़ मिथकीय प्राणी किन्नारा या किन्नारी भी कहा गया है। इस पेड़ को स्वर्ग में अप्सरा और देवता द्वारा संरक्षित किया गया है। वैसे वैसे कल्पवृक्ष को लेकर संस्कृत साहित्य में कई किस्से – कहानियां उल्लेखित की गई है।
एक अन्य कथानुसार ऋषि दुर्वासा ने भी कल्प वृक्ष के नीचे जप एवं तप किया था। कल्पवृक्ष के देवताओं के राजा इंद्र के यहां पर होने के पीछे की कहानी भी समुद्र मंथन से जुड़ी है। बताया जाता है कि मंथन के बाद देवराज इन्द्र इस पेड़ को अपने साथ स्वर्ग ले गए थे। वैसे कल्पवृक्ष को संस्कृत में मनसारा भी कहा जाता है जिसका एक शाही प्रतीक के रूप में उल्लेख किया गया है। कल्पवृक्ष को बेशकीमती सोना और कीमती पत्थरों को प्रदान करने वाला वृक्ष भी कहते है। कल्पवृक्ष को संरक्षित पेड़ के रूप में गिना जाता है