महिलाओं में डिप्रेशन सबसे ज्यादा : महिलाएं अक्सर अवसाद के गहरे सागर में डूबी नजर आती हैं। यह मानसिक स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या है जो न केवल महिलाओं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती है। महिलाओं में अवसाद के लक्षण पुरुषों के लक्षणों के समान ही हो सकते हैं, जैसे कि उदासी, नींद न आना, भूख में बदलाव, थकान और एकाग्रता में कमी। लेकिन क्या महिलाओं में अवसाद के और भी कारण हैं? बिल्कुल! महिलाओं के शरीर में हार्मोन का असंतुलन, मासिक धर्म की समस्याएं, गर्भावस्था, प्रसव के बाद की अवस्था, बांझपन और रजोनिवृत्ति जैसी स्थितियां अवसाद को और बढ़ा सकती हैं। इन जैविक कारकों के अलावा, सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव भी महिलाओं को अवसाद की चपेट में ला सकते हैं। यह समस्या किसी विशेष नस्ल, रंग, जाति या आर्थिक स्थिति से बंधी नहीं है। हर महिला, चाहे वह किसी भी वर्ग से आती हो, अवसाद का शिकार हो सकती है।
क्यों होता है डिप्रेशन?
महिलाओं को जीवन के विभिन्न कालखंडों में कई तरह का तनाव झेलना पड़ता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन महिलाओं के रक्त संबंध में डिप्रेशन की प्रवृत्ति मौजूद है अथवा जिनमें स्वाभाविक तौर पर मूड बदलने की समस्या रहती है या जिन महिलाओं में असुरक्षा का भाव होता है या फिर जिन्हें किसी मित्र और सगे-संबंधी की मृत्यु या अप्रिय अवस्थाओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें अवसाद होने की प्रबल आशंका रहती है। इसी प्रकार बनते-बिगड़ते रिश्ते और यौन संबंधी समस्याएं भी अवसाद का कारण बन जाती हैं।
बचाना है मन को बीमार होने से
डिप्रेशन के शुरुआती दिनों में रुग्ण महिला मन में उत्साह हीनता तथा दैनिक कार्यों के प्रति निराशा आदि की शिकायत करती है। रोग बढ़ने के साथ मन में उदासी, सामाजिक अंतर्मुखता, स्वभाव में क्रोध और चिड़चिड़ापन व रोने का मन करना, यौन संबंधों से विरक्तता जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। अधिक तीव्र या जीर्णावस्था में व्यक्तिगत सफाई और स्वच्छता की कमी, अनिद्रा, भूख नहीं लगने और स्वयंघाती विचार प्रकट होते हैं। इस तरह रोगी जीवन से पूर्णत: निराश होने लगता है।
रज और तम दोष हैं कारण
आचार्य चरक ने मानसिक रोगों का वर्णन उन्माद रोगाधिकार में किया है, जिसमें उन्होंने रज और तम आदि दोषों को अवसाद का मूल कारण बताया है। यद्यपि महिलाओं में होने बाले अवसाद का उपचार प्राय: पुरुषों की तरह ही किया जाता है परंतु यहां अधारभूत कारण के निवारण का विषेश ध्यान रखा जाता है। रुग्ण महिला के पति अथवा किसी अन्य पारिवारिक सदस्य अथवा मित्र को विश्वास में लेकर रोगी की काउंसिलिंग की जाती है।
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बचाव ही सबसे बेहतर उपाय
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि महिलाओं में उनके हार्मोन मानसिक संतुलन को बनाए रखने में बहुत सहायक होते हैं। डिप्रेशन का उपचार करते हुए रुग्णा की दिनचर्या एवं उसकी जीवनशैली को परिवर्तित करना एक महत्वपूर्ण बिंदु है। -यथाशक्ति नियमित व्यायाम करने से तनाव घटता है।
आहार का विशेष ध्यान देना चाहिए, कैफीन, अल्कोहल तथा भारी और देर से पचने वाले भोजन से परहेज करना चाहिए।
योग और ध्यान की प्राचीन भारतीय विधाओं को आज पूरी दुनिया में तनाव मुक्ति और उत्तम स्वास्थ्य के उपाय देखा जा रहा है।
अवसाद में थोड़ा सा आराम दिखने पर प्राय: लोग दवाओं का सेवन छोड़ देते हैं, जिससे रोग की पुनरावृत्ति हो सकती है।
कई बार अवसाद का संबंध सिर्फ रोगी के दृष्टिकोण से ही होता है। ऐसे में आयुर्वेद हर व्यक्ति को सकारात्मक सोच विकसित करने की प्रेरणा देता है।
डिप्रेशन किसी भी व्यक्ति को जीवन में कभी भी आक्रांत कर सकता है। इसे एक मनोहीनता का विषय न बनाकर इसका उचित उपचार करना चाहिए और यह सूत्र पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए ही कारगर है।