मैं इस बात से सहमत हूं मगर यह तभी संभव हो सकता है जब देश की सीमाएं सशक्त हों तथा हथियारबंद सेनाओं का आधुनिकीकरण समय तथा जरूरत के अनुसार होता रहे ताकि रक्षाबल विदेशी शक्तियों का सामना करने के लिए तैयार-बर-तैयार रहें क्योंकि देश की सुरक्षा के साथ समझौता करना बिल्कुल भी जायज नहीं।
इसलिए भारत को अपनी युद्ध की तैयारी का जायजा लेते हुए कमियों-पेशियों को दूर करने की जरूरत होगी।
इस संदर्भ में वर्णनीय है कि संसद की रक्षा मामलों से संबंधित स्थायी कमेटी ने 21 मार्च को जो रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की वह चिंताजनक, ध्यान देने योग्य तथा कार्रवाई करने योग्य है।
कमेटी ने अनेकों किस्मों की चुनौतियों पर लेखा-जोखा का जिक्र करते हुए विशेष तौर पर वायु सेना को 40 तेजा लाइट काम्बैट विमान (एल.सी.ए.) मुहैया करवाने में बेहद देरी के बारे में ङ्क्षचता प्रकट करते हुए कहा कि सरकार को चाहिए
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कि बिना समय को बर्बाद किए स्टेट आफ दी यार्ड 5वीं पीढ़ी के फाइटर विमान तुरंत ही सीधे काऊंटर से खरीदे जाएं।
आखिर ऐसा क्यों? क्योंकि 2 वर्ष पहले भी कमेटी ने एल.सी.ए. के निर्माण में देरी का कारण मुख्य तौर पर सेना तथा एच.एल.ए. के बीच समन्वय की कमी, घटिया प्रबंधकीय नियंत्रण जैसे कारण दर्ज किए हैं।
जिससे समयबद्ध तरीके से विमान उपलब्ध नहीं करवाए गए।
विदेशों से जो हथियार, गोला-बारूद इत्यादि आयात किया जा रहा है उस बारे विवरण सहित लिखा है कि वर्ष 2016 से 2020 के बीच 84.3 प्रतिशत हथियार (पारंपरिक) विदेशी थे।
कमेटी ने हथियारों की खरीद-फरोख्त के बारे में ङ्क्षचता प्रकट करते हुए इसे केवल कम करने की नसीहत ही नहीं दी बल्कि आत्मनिर्भरता पर भी जोर दिया।
इस तरीके से कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सी.ए.जी.) ने तोपखाने के आधुनिकीकरण में मध्यम चाल बारे कहा कि मार्च 2022 तक मात्र 8 प्रतिशत तोपें ही तोपखाने को सुपुर्द की गईं।
मेरी हमेशा से ही कोशिश रही है कि मेरे लेख तथ्यों तथा आपबीती पर आधारित हों।
अब जबकि इस लेख की शुरूआत ही रक्षा मंत्री के सुरक्षा फलसफे से जुड़ी हुई है इसलिए मुझे याद आ गया है कि इस सिलसिले में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बतौर लेखक अक्तूबर 2021 में ‘रक्षा निर्माण को मिली नई उड़ान’ के शीर्षक तहत एक लेख लिखा था।
मैंने भी उसे संभाल कर रखा है तथा अब उसकी प्रासंगिकता को समझते हुए उस लेख के कुछ अंश सांझा करना उचित समझता हूं।
लेखक ने सन 2014 के बाद भारत सरकार की ओर से रक्षा के क्षेत्र में कई सुधारों का जिक्र करते हुए दर्ज किया कि पिछले कुछ दशकों में हथियारबंद सेनाओं को आर्डीनैंस फैक्टरी बोर्ड (ओ.एफ.बी.) द्वारा उत्पादन की ऊंची लागत, घटिया गुणवत्ता तथा आपूर्ति में देरी से संबंधित चिंताओं को झेलना पड़ा है।
ओ.एफ.बी. की वर्तमान प्रणाली में कई खामियां हैं।
इसलिए 7 नई कार्पोरेट इकाइयों को बनाने का फैसला करना एक नए युग की शुरूआत होगी।
जम्मू-कश्मीर के अलावा कुछ अन्य राज्यों में भी सुरक्षा बलों को अलग-अलग आतंकवादी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे में यदि हमारे हथियारबंद दस्ते अति आधुनिक साजो-सामान से लैस नहीं होंगे तो उन्हें बड़ा जानी तथा माली नुक्सान झेलना पड़ सकता है।
यही कारण है कि केंद्रीय सरकार रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठा रही है।
क्या यह उचित है?
विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने 25 मार्च कार्यक्रम के दौरान कहा कि पूर्वी लद्दाख में एल.ए.सी. पर स्थिति बड़ी नाजुक बनी हुई है तथा सैन्य पक्ष से यह खतरनाक है।
उन्होंने यह भी कहा कि चीन से संबंध उस समय तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक सीमा से जुड़ी समस्याएं सुलझाई नहीं जातीं।
सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने 22 मार्च को कहा कि सीमा प्रबंधन में कमजोरियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़े विरोध पैदा कर सकती हैं।
रक्षा मंत्री के लेख अनुसार यदि वर्ष 2014 से सरकार ने रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठा रखे हैं तो कमेटी, जिसके चेयरमैन भाजपा के सांसद जुएल ओरांव हैं।
देश की सुरक्षा के बारे में इतने चिंतित क्यों हैं?
अब हथियारबंद सेनाओं के प्रमुख विमानों, तोपों, टैंकों और गोला-बारूद इत्यादि की कमी के बारे में बोल रहे हैं तो फिर कम से कम कमेटी की रिपोर्ट के बारे में चालू बजट सत्र में बहस तो होनी ही चाहिए।
यदि बहस नहीं भी करनी तो सैन्य आधुनिकीकरण को प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए।
जरूरी हथियार तुरंत उपलब्ध करवाए जाएं तथा रक्षा बजट की कमी को जल्द से जल्द पूरा किया जाए।
चुनाव तो राजनेता लड़ते ही रहेंगे मगर युद्ध तो बहादुर जवानों ने लडऩा है।
राजभोग का आनंद तभी लिया जा सकता है यदि देश सुरक्षित हो।