जबकि ‘इंडिया’ के मौजूदा गठबंधन को 26 करोड़ वोट मिले थे। पर ये वोट इतने सारे दलों में आपसी मुकाबले के कारण बंट गए।
जिससे इनकी हार हुई। अगर इस गठबंधन में ई.डी., सी.बी.आई. व आई.टी. की धमकियों के बावजूद एकजुट बना रहता है और मुकाबला आमने-सामने का होता है तो जो परिणाम आएंगे वह स्पष्ट हैं।
दूसरा पक्ष यह है कि जहां एन.डी.ए. आज 60 करोड़ भारतीयों पर राज कर रही है वहीं ‘इंडिया’ संगठन 80 करोड़ भारतीयों पर आज राज कर रहा है और इसके शासित राज्य भी एन.डी.ए. से कहीं ज्यादा हैं।
जहां तक परिवारवाद का आरोप है तो दोनों संगठनों में परिवारवाद प्रबल और समान है।
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अंतर यह है कि जहां एन.डी.ए. में शामिल 39 दलों में परिवारवादी नेताओं का कोई जनाधार नहीं है, उनमें से ज्य़ादातर दल ऐसे हैं जिनमें एक भी विधायक तक नहीं है।
जबकि इंडिया’ संगठन में जो परिवारवाद है उसके सदस्य दशकों तक राज्यों का शासन चलाने के अनुभवी और बड़े जनाधार वाले नेता हैं।
जहां भाजपा के नेताओं ने शुरू में दावा किया था कि वह कांग्रेस मुक्त भारत बनाएंगे वहां आज एन.डी.ए. स्वयं ही कांग्रेसयुक्त संगठन बन चुका है।
जिसमें कई केंद्रीय मंत्री व मुख्यमंत्री वह हैं जो कांग्रेस के स्थापित नेता थे पर ई.डी., सी.बी.आई. की धमकियों से डरकर भाजपा में शामिल हुए हैं।
आने वाले चुनाव में जहां ‘इंडिया’ संगठन को टिकट बांटने में कम दिक्कत आएगी क्योंकि उनके सब दावेदार जनाधार वाले हैं और कई चुनाव जीत चुके हैं। वे वहीं से लें टिकट।
अलबत्ता उन्हें अपने अहं और महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगाना होगा। जबकि एन.डी.ए. में शामिल ज्यादातर दल ऐसे हैं जो आज तक एक विधायक का चुनाव भी नहीं जीते पर अब लोकसभा के लिए ये सभी अपनी औकात से ज्यादा टिकट मांगेंगे।
तब भाजपा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी। भाजपा का जो इतिहास रहा है कि शिवसेना जैसे जितने भी दलों ने उसका साथ दिया उन सबको भाजपा ने या तो अपमानित किया या उनको हड़प ही गई।
ऐसे में अब की बार फिर से एन.डी.ए. में शामिल हुए दल हमेशा अपना अस्तित्व खोने के डर से ग्रस्त रहेंगे।
उन्हें इस बात का भी सामना करना पड़ेगा कि आर.एस.एस. उन्हें अपने रंग में रंगने का भरपूर प्रयास करेगा।
कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो ‘इंडिया’ संगठन के बनने से भाजपा और एन.डी.ए. संगठन के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है, जिसको देखकर अब 2024 का चुनाव बहुत रोचक होने जा रहा है।
जिस तरह भाजपा को विपक्ष के ‘इंडिया’ नाम के संगठन से आपत्ति हो रही है उसका असल कारण विपक्ष की एकजुटता है।
वरना जब दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना की एक क्षेत्रीय पार्टी ने अपना नाम बदल कर उसे ‘भारत राष्ट्र समिति’ कर दिया तो भाजपा या एन.डी.ए. के किसी भी सहयोगी दल ने इस पर आपत्ति नहीं जताई। इस विपक्षी एकजुटता को भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों में एक गंभीर चुनौती मान रही है।
जब 2014 में मोदी जी लोकसभा चुनावी मैदान में उतरे थे तब ऐसी कोई भी चुनौती उनके सामने नहीं थी।
‘इंडिया’ संगठन बनने के बाद इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि विपक्षी दल न सिर्फ एकजुट होते दिखाई दे रहे हैं बल्कि एन.डी.ए. के खिलाफ युद्ध करने का चुनावी बिगुल बजा रहे हैं।
भाजपा के कुछ नेता ‘इंडिया’ संगठन के अंग्रेजी नाम को लेकर भी काफी असहज दिखाई दिए हैं। इतना असहज कि इंडिया नाम को अंग्रेजों की देन बता कर उसका विरोध भी कर रहे हैं।
उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाऊंट पर से भी इंडिया को हटा कर भारत रख दिया है।
विपक्ष ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि यदि इंडिया नाम से इतनी आपत्ति है तो क्या सरकार द्वारा चलाई जाने वाली उन सभी योजनाओं के नाम भी बदले जाएंगे जहां ‘इंडिया’ का उपयोग किया गया है?
क्या भाजपा अपने सोशल मीडिया हैंडल का नाम बीजेपी इंडिया को भी बदलेगी? यदि अन्य राजनीतिक पार्टियों के नाम को खंगाला जाए तो आपको ऐसी कई पार्टियों मिलेंगी जिनके नाम में भारत, भारतीय, इंडिया, इंडियन शब्द अवश्य मिलेगा। तो फिर इस बेतुके विवाद को क्यों खड़ा किया जा रहा है?
असल में भाजपा और एन.डी.ए. को जिस बात से अधिक परेशानी है, वो विपक्षी दलों का एक एेसा एेलान है जिसका सामना भाजपा को आने वाले लोकसभा चुनावों में करना पड़ेगा।
गौरतलब है कि विपक्षी नेताओं ने इस बात की घोषणा कर दी है कि वो आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा और एन.डी.ए. के हर एक चुनावी प्रत्याशी के खिलाफ ‘इंडिया’ संगठन अपने सभी दलों का समर्थित एक प्रत्याशी ही उतारेंगे जो उस संसदीय क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय होगा।
जाहिर सी बात है कि इससे विपक्षी दलों में बंटने वाले वोट एकजुट हो जाएंगे और भाजपा को काफी नुक्सान हो सकता है।
आगामी महीनों में 4 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। उनके परिणाम देश की दिशा तय करेंगे।
उसके बाद भी लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा के नेता हिंदू मुसलमान के नाम पर ध्रुवीकरण करवाने की हर संभव कोशिश करेंगे वहीं ‘इंडिया’ संगठन बेरोजगारी, महंगाई, दलितों पर अत्याचार और समाज में बंटवारा कराने के आरोप लगाकर भाजपा को कठघरे में खड़ा करेगा।
विपक्ष मोदी जी से 2014 में किए गए वायदों के पूरा न होने पर भी पर सवाल करेगा।
जबकि भाजपा भारत को विश्व गुरु बनाने जैसे नारों से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेगी। अब देखना यह होगा कि मतदाता किसकी तरफ झुकता है।