पार्थो सिल। राजधानी देहरादून के राजकीय मेडिकल कालेज में कुछ कार्मिको के कॉकस में घिरे मुख्य प्रमुख डॉ सयाना ने अपने ही मेडिकल कालेज में अपने मन मुताबिक कोरोना काल मे कालेज के अधीन डॉक्टरो और कार्मिको का इस्तेमाल अपने दिमाग मे मौजूद बौद्धिक विद्रोही के द्वारा किया ।
डॉ सयाना के कॉकस के राइट हैंड संविदा कर्मी एचओडी शेखर पाल ने एक नियमित डॉक्टर और कई कर्मियों के खिलाफ कई फ़र्ज़ी और सुनियोजित शिकायतों का पुलिंदा बना उनको परेशान और अपने द्वारा नियोजित षड्यंत्र का शिकार बनवा विवादित करने का काम किया।
दून चिकित्सालय/राजकीय मेडिकल कालेज में एक ऐसी फर्म केडीएस’ जिसका पता ही फर्जी था और जिसने हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की पाइप लाइन बिछाने व अन्य उपकरणो को लगाने का कार्य किया और बाबुओ की मिली भगत से बिल ज्यादा बढ़ाने के लिए पाइपलाइन की लगाई गई लेन्थ को बिल में ज्यादा दर्शाकर, भुगतान ज्यादा का लिया गया। इस फर्जी पते वाली फर्म पर आरटीआई कार्यकर्ता की RTI लगने के बाद उस फ़र्म द्वारा अपना जीएसटी नंबर भी सरेंडर कर दिया गया । ऐसा करने से क्या भ्रष्टाचारियों के गुनाह छिप जाएंगे? सूत्रो के मुताबिक इन सबके पीछे इस अस्पताल मे कार्य करने वाले पुराने ठेकेदार की भूमिका रही है।
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रिवाइव हेल्थटेक एंड इंडस्ट्रियल सल्यूशन नाम की कंपनी के द्वारा 300 रुपये का कोरोना आरटीपीसीआर किट और लाखो की कीमत वाले उपकरण की खरीद फ़रोख़्त करोड़ो में की गयी और बाद में कुछ कोरोना किटो को उसी फर्म द्वारा कम कीमत पर भी दिया गया ताकि बड़ा खेल, खेल कर शासन के अधिकारियों को गुमराह किया जा सके। इस तरह की खरीद फरोख्त में कालेज प्रबंधन द्वारा प्रोक्योरमेंट नियमावली घोर उल्लंघन कोरोनाकाल के नाम पर किया गया।
सयाना ने कैसे कोरोना की आड़ में नियुक्तियों में बड़ा खेल खेला। कालेज के स्थाई तौर पर मौजूद डॉक्टर है फिर भी एक संविदा कर्मी शेखर पाल को नियमो के विपरीत विभाग का एचओडी बना रहने दिया गया। नियुक्तियों का खेल बड़े तरीके से सयाना द्वारा खेला गया। सूत्रों की माने तो एक डॉक्टर पर कई तरीके के गंभीर आरोप लगाने के पीछे संविदा कर्मी शेखर पाल और दीपक जुयाल का हाथ था, जिस बात से प्राचार्य भली-भांति वाकिफ थे।
कोरोना काल में अस्पताल में 300 बेड और 100 ICU बेड है और मरीज़ो को ऑक्सीजन देने में सक्षम दून मेडिकल कालेज ने कैसे 700 मरीज़ों को ऑक्सीजन की आपूर्ति की। जबकि गौर करने वाली बात है कि मरीज़ो को ऑक्सीजन की आपूर्ति परिसर में लगे प्लांट से निकासी पॉइंट द्वारा की जाती है और जब पॉइंट ही कम है तो कैसे 300+100 लोगो का ऑक्सीजन 700 से ज्यादा लोगो मे बांटा जा सकता है? अगर 400 मरीजो की आपूर्ति के लिए बने ऑक्सीजन प्लांट को 700 लोगो मे विभाजित करेंगे तो क्या किसी मरीज़ की जान बचाना संभव है क्या? क्योंकि किसी भी मरीज को ऑक्सीजन की आपूर्ति पूरी नही मिल पाने से वो इस कोरोनाकाल के गाल में समा गए। इससे साफ जाहिर होता है कि राजकीय दून मेडिकल कालेज में सबसे ज्यादा कोरोना में हुई मरीज़ो की मौतों का जिम्मेदार क्या प्राचार्य को माना जाए या शासन को या फिर तत्कालीन स्वास्थमंत्री को ये बड़ा सवाल है ?
माइक्रोबॉयोलॉजी डिपार्टमेंट में किस फ़र्ज़ी डॉक्टर दीपक जुयाल द्वारा वेरिफ़ाई किए गए रिवाइव हेल्थटेक और अन्य कंपनियों के बिलो का भुगतान किस आधार पर किया गया?
जबकि डिपार्टमेंट में इस नाम का कोई भी डॉक्टर नहीं है। दीपक जुयाल का एक प्रमुख समाचार पत्र के पत्रकार से क्या रिश्ता है? जिसने मेडिकल कॉलेज की प्रायोजित खबरों को अपने हिसाब से प्रमुख समाचार पत्र में स्थान दिलवाया। इस कोरोना काल मे अपने हिसाब से खबरों का भी खेल, अपने निजी फ़ायदे के लिए खेला गया। क्या इन सब मे सम्मलित अधिकारियों एवं कार्मिको पर कर्मचारी आचरण नियमावली के तहत जांचकर कार्यवाई नही होनी चाहिए।
इन सब खबरों की आड़ में विभाग से निर्गत फर्जी कोरोना की रिपोर्टो के प्रकरण को पूरी तरह दबा दिया गया जिसकी जिम्मेदारी डॉ निधि नेगी की थी जो इन फ़र्ज़ी कोरोना टेस्ट रिपोर्टों की जिम्मेदार हैं क्यूकि उनकी आईडी से ही कोरोना टेस्ट की फर्जी रिपोर्ट जारी हुई। आज तक डॉ नेगी पर कोई कार्यवाई क्यो नहीं हुई ? जबकि डॉ निधि नेगी श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में स्थायी नियुक्ति पाने के बाद भी पिछले आठ महीनों से प्राचार्य और शेखर पाल की मेहरबानी से दून मेडिकल कॉलेज में ही सम्बद्ध है, ऐसा क्यों ?
इस पूरी दलाली के कॉकस का सूत्रधार कौन है? कालेज के मुख्य प्रमुख डॉक्टर सयाना ने क्यो इस भ्रष्टाचारियों के कुकर्मो को बढ़ावा दिया। क्या इन सब के पीछे डॉ सयाना या शासन में बैठा अधिकारी या फिर कोई और है इन सब प्रकरणों और भ्रष्टाचार का सूत्रधार है ?
जल्द पढ़े खोजी नारद के भाग 3 में।