तिहास के पन्नों से भले ही महाराज फतेह बहादुर साही को जगह न मिली हो, लोगों के दिलों पर उनके शौर्य की कहानी आज भी करती है. ब्रिटिश हुकूमत ने इस महान नायक को गिरफ्तार करने के लिए 20 हजार रुपये का इनाम रखा था.
बात सन् 1765 की है. शाह आलम ने बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को सौंप दी थी. तब सारण के कलेक्टर ने हुस्सेपुर (अब वर्तमान गोपालगंज जिले का एक गांव) के महाराज फतेह बहादुर साही से कर मांगा और कंपनी की अधीनता स्वीकार करने को कहा. फतेह बहादुर साही ने दोनों बातें मानने से इनकार कर दिया.
उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी. भारत में अंग्रेजों को पहली बार हुस्सेपुर राज से विरोध का सामना करना पड़ा था. अंग्रेज अधिकारी तमतमा उठे. उधर, 1768 में ही अंग्रेज अधिकारी वारेन हेस्टिंग्स ने बनारस के राजा चेत सिंह पर राज्य कर पांच लाख का अतिरिक्त कर लगाया था. राजा चेत सिंह ने कर देने से इनकार कर दिया, तो अंग्रेजों का कहर टूटना शुरू हो गया. चेत सिंह ने महाराज फतेह बहादुर साही से सहयोग मांगा. तब गुरिल्ला दस्ता बना कर जंग का आगाज हुआ.
विद्रोह के दौरान, 1788 में महाराज के भाई बसंत साही ने ही ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए उनके विरुद्ध मुखबिरी शुरू कर दी. महाराज को इसकी जानकारी हो गयी और उन्होंने बसंत साही को जादोपुर के पास ले जा कर गंडक नदी के समीप शूट कर दिया और खुद हुस्सेपुर छोड़ कर बागजोगिनी के जंगल के उतरी छोर पर तमकुहीं गांव के पास (वर्तमान यूपी के कुशीनगर जिले में)अपना निवास बनाया.
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आज भी यह तमकुहीं राज के नाम से विख्यात है. इधर, वारेन हेस्टिंग्स ने फतेह बहादुर को मारने के लिए अतिरिक्त सेना बुलायी. इस लड़ाई में फतेह बहादुर का बड़ा बेटा मारा गया. अंतत: उनके गुरिल्ला युद्ध से डर कर अंग्रेजी सेना को चुनार की ओर पलायन करना पड़ा. अंग्रेज लेखक विल्टोन ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ बिहार इंडिया फैक्टरीज में भी इसका उल्लेख करते हुए लिखा है कि वारेन हेस्टिंग्स फतेह बहादुर साही से इतना भयभीत हो गया था कि कभी घोड़े पर हौदा कसवाता था, तो कभी हाथों पर जीन. 20 हजार रुपये का इनाम भी घोषित किया.
अचानक गायब हो गये बहादुर साही
अंग्रेजों ने अवध के नवाब पर दबाव बनाया कि महाराजा फतेह बहादुर साही को अपने क्षेत्र से निकाल दें. फतेह बहादूर साही वर्ष 1800 तक तमकुही में रहे. इसके बाद अचानक कहीं चले गये. किसी ने कहा कि संन्यासी हो गये, तो किसी ने कहा कि वह भूमिगत हो गये. भयभीत अंग्रेज उनके गायब होने के बाद भी वर्षों तक आतंकित रहे. जब अंग्रेजों को भरोसा हो गया कि महाराज फतेह बहादुर साही अब नहीं हैं, तब 27 फरवरी, 1837 को स्वर्गीय बसंत साही के पुत्र छत्रधारी साही को राज गद्दी पर बैठाया. उसी के साथ हुस्सेपुर का राज्य हथुआ में विलय हो गया. आज भी हथुआ राज कायम है.