तीर्थों का राजा कैसे बना प्रयागराज? : पुराणों में एक कथा मिलती है जिसमें कहा गया है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद एक यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के लिए सबसे पवित्र स्थान की खोज में उन्होंने पूरी पृथ्वी को देखा, तब भी उनके मन में संशय था कि कौन सा स्थान सबसे श्रेष्ठ है। सम्पूर्ण सृष्टि का भ्रमण करने के दौरान उन्हें प्रयागराज का क्षेत्र दिखाई पड़ा जहां तीन नदियों, गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम था।
सृष्टि का प्रथम यज्ञ करने से पहले उन्होंने अपने मन को संशय को दूर करने के लिए शेषनाग जी से पूछा कि, ‘क्या वाकई प्रयागराज सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है और क्या ये तीर्थों का राजा कहलाने का अधिकारी है?’ ब्रह्मा जी के इस संशय के निवारणार्थ शेषनाग जी ने कहा, ‘हे ब्रह्मदेव! तुला तौलने के काम में आती है, धर्म निर्णय में सबके लिए तुला प्रमाण कही गयी है, इस कारण जो तुला द्वारा नापा तौला गया हो, वह सर्वश्रेष्ठ होगा और उसकी सत्यता में किसी को सन्देह नहीं रहेगा, तुला से सब सन्देह दूर होते हैं।
आप स्वयं परीक्षा कर लें कौन-सा तीर्थ न्यूनाधिक अथवा बराबर है अथवा सर्वश्रेष्ठ है, इसका निर्णय तुला यानि तराजू के द्वारा हो जायेगा। कहा जाता है, उसके बाद सभी तीर्थों को बुलाया गया, तद्नुसार एक पलड़े पर प्रयाग तीर्थ तथा दूसरे पलड़े पर क्रमशः सभी तीर्थ रखे गए, किन्तु प्रयाग तीर्थ का पलड़ा अन्य सभी तीर्थों की अपेक्षा भारी रहा, तब से प्रयाग तीर्थ को तीर्थराज की मान्यता सर्वसम्मति से प्रमाणित मान ली गयी। निर्णय हो जाने के बाद इस स्थान की पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा को महसूस कर ब्रह्मा जी ने यहीं पर यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के दौरान देवताओं ने इस स्थान को ‘तीर्थराज’ के रूप में स्वीकार किया और इसकी महिमा का बखान किया।