भारत में आस्था है , मनोकामना है और एक मन्नत की मान्यता है। लेकिन पढ़े लिखे युवा भी इसमें उलझ जाते हैं ये यकीन करना आज के डिजिटल युग में थोड़ा अजीब लगता है। अब ये लाइने ही पढ़ लीजिये जहाँ लिखा है — हे भगवान, NEET में मेरा चयन हो जाए, हे ईश्वर, पढ़ाई में मेरा फिर ध्यान लगने लगे, मुझे एम्स दिल्ली अलॉट हो जाए, आईआईटी दिल्ली में मुझे एडमिशन मिल जाए मेरे भाई की टॉप क्लास जॉब लग जाए…
ये सारी बातें किसी इंसान के अल्फ़ाज़ या चिट्ठी का हिस्सा नहीं हैं. कोचिंग सिटी के नाम से मशहूर राजस्थान के शहर कोटा के एक मंदिर की दीवार पर लिखी गईं मनोकामनाएं हैं. तलवंडी क्षेत्र के राधा कृष्ण मंदिर की इस दीवार को ‘विश्वास की दीवार’ कहा जाता है और ये मनोकामनाएं लिखी हैं, यहां के विभिन्न कोचिंग सेंटर में बड़ी संख्या में पढ़ रहे छात्रों ने।
हर साल देशभर से लाखों छात्र देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन पाने का सपना लेकर कोटा पहुंचते हैं. लेकिन यहां पहुंचकर वो व्यस्त दिनचर्या, तनाव और उम्मीदों के बोझ तले दब जाते हैं.कुछ छात्रों को मिली सफलता और फिर…राधाकृष्ण मंदिर के पुजारियों के अनुसार, वर्षों से छात्रों का विश्वास इतना पक्का हो चला है कि हर दो महीने में मंदिर की सफेदी करवानी होती है।
प्रबंधक बताते हैं कि प्रतिदिन 300 से अधिक विद्यार्थी मंदिर में आते हैं और इस साल यहां विभिन्न कोचिंग संस्थानों में रिकॉर्ड दो लाख विद्यार्थियों ने दाखिला लिया है.शुरू में तो मंदिर प्रशासन ने ऐसी बातें लिखने को दीवारों को विरूपित करने के तौर पर लिया लेकिन वर्ष 2000 के शुरू में जब यहां अपनी मनोकामनाएं लिखने वाले कुछ छात्रों को आईआईटी और मेडिकल प्रवेश प्रवेश परीक्षा में सफलता मिल गई तो मंदिर लोकप्रिय हो गया।
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पुजारी भी आज ये कहते हैं कि काफी समय पहले, कुछ विद्यार्थी यहां प्रार्थना करने आए थे और उन्होंने आईआईटी या मेडिकल प्रवेश परीक्षा में चयनित होने की मनोकामनाएं दीवार पर लिखी थीं. कुछ महीने बाद दो विद्यार्थियों के माता-पिता मंदिर में आए और उन्होंने यह दावा करते हुए दान दिया कि दीवार पर लिखी उनके बच्चों की मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं और तब से यह एक परिपाटी बन चली है.… और इस तरह नाम पड़ा ‘विश्वास की दीवार’
किशन बिहारी ने बताया, शुरू में विद्यार्थी मंदिर की दीवार पर कहीं भी अपनी मनोकामनाएं लिख दिया करते थे और हम मंदिर को विरूपित न करने की बात कहकर उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करते थे. उन्हें कार्रवाई की चेतावनी भी देते थे. लेकिन जब स्थानीय लोगों और विद्यार्थियों का विश्वास पक्का हो चला तब हमने मंदिर में इसके लिए समर्पित क्षेत्र बनाने का फैसला किया और उसे विश्वास की दीवार नाम दिया।
मेहनत ही सफलता की कुंजी
एक अन्य पुजारी त्रिलोक शर्मा ने कहा कि हर दो महीने में मंदिर की पुताई कराई जाती है क्योंकि दीवारें मनोकामनाओं से भर जाती हैं और अन्य विद्यार्थियों के लिए लिखने के वास्ते जगह नहीं रहती. उन्होंने कहा, जब भी विद्यार्थी आते हैं तो हम उन्हें आशीर्वाद व प्रसाद देते हैं और यह कहते हुए उत्साहित करते हैं कि ईश्वर केवल तभी मदद करता है जब आप कठिन परिश्रम करते हैं. कठिन परिश्रम ही कुंजी है. मंदिर के इंतेज़ामिया सदस्य बताते हैं कि हम विद्यार्थियों एवं उनके माता-पिता से बात करते हैं. कई बार हमें नजर आता है कि विद्यार्थियों ने अपनी पसंद का कॉलेज या रैंक लिखी होती है. हम उन्हें समझाते हैं कि अपनी भावनाएं प्रकट करना अच्छा है लेकिन उसके लिए साथ में प्रयास भी जरूरी है.गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच आस्था दबाव और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच यह मंदिर विद्यार्थियों के लिए ध्यान लगाने और अच्छा महसूस करने की जगह भी है।