काशिफ रिज़वी की जड़ीली कलम से :- (संत का खेल प्राधिकरण फेल) प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बृजेश संत के आने के बाद प्राधिकरण मे एक अजीब सा माहौल बन गया हैं। देहरादून मे अवैध व्यवसायिक निर्माणों की सुनामी सी आ गयी हैं। प्राधिकरण मे जब भी उपाध्यक्ष महोदय समीक्षा बैठक करते हैं तो उनके द्वारा अपने अधीनस्थ अधिकारियो और कर्मचारियों को कड़ाई से लंबी चौड़ी नसीहत और दंड भी दिया जाता हैं पर अवैध निर्माण करने वालो पर उनका रवैया बिलकुल संत टाइप हैं वो भी अलीगढ के ताले जैसा, जो अवैध निर्माण करने वालो पर नहीं खुलेगा।
अभी कुछ दिन पहले खोजी नारद द्वारा लिखी खबर का उन्होंने तुरंत संज्ञान भी लिया और बहल चौक पर बहल इंटरप्राइजेज़ के अवैध निर्माण पर सील की कार्यवाई भी करी पर जब खोजी नारद द्वारा उसी निर्माण के 150 मीटर करीब राजप्लाजा की दूसरी मंज़िल की छत पर बलदेव जयसवाल द्वारा चार दुकानों के अवैध निर्माण की खबर भी लिखी गयी और नदियों पर अतिक्रमण कर बने अवैध निर्माण जिसमे रिओ रिज़ॉर्ट, रिवर स्टोन,रिवर फार्म जैसे अनेक अवैध अतिक्रमण पर लिखा गया और प्राधिकरण से सवाल भी पूछा गया, तो MDDA के उपाध्यक्ष महोदय तुरंत इन निर्माण पर संत बन ‘मौनी बाबा’ बन गए क्यूकि इन अवैध निर्माणों में सेटिंग का खेल कुछ और ही है।
राज प्लाज़ा का अवैध निर्माण –
राज प्लाजा काम्प्लेक्स पर अवैध अतिक्रमण और बिना पार्किंग का होने का वाद प्राधिकरण मे दशकों से लंबित हैं और ऊपर से बलदेव जायसवाल ने दूसरी मंजिल की छत पर 4 दुकाने अवैध बनाकर, MDDA के संत के सामने प्राधिकरण की ज्ञात कार्यप्रणाली पर मूत्र विसर्जित कर दिया और कमिश्नर के यहाँ जाकर सीलिंग के खिलाफ स्टे आर्डर ले आया और जब खोजी नारद के द्वारा इस प्रकरण पर कमिश्नर सुशील कुमार से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि हमने स्टे पर सुनवाई वाले दिन उनकी फ़ाइल वापस MDDA भेज दी हैं। जबकि स्टे ऑर्डर में सील पर उन्होने स्टे दिया पर उस स्टे ऑर्डर में यथास्थिति बनाए रखने के बारे में कुछ नहीं अंकित था। जबकि मौके पर निर्माण कार्य जारी है।
अगले दिन 1 अप्रैल को कमिश्नर के कहे अनुसार उन्होने पुनःविचार के लिए प्राधिकरण को फ़ाइल वापस कर दी। असल खेल की शुरुआत यही से होती है, क्यूकि ये सब पूर्व सुनियोजित था अब एमडीडीए पुनःविचार मे समय ले लेगा और अवैध अतिक्रमण पर लिखने वाले व शिकायतकर्ता भी ठंडे हो जाएंगे और अगर गाहे बगाहे कोई प्राधिकरण पहुँच भी गया तो उन्हे स्टे ऑर्डर की प्रति दिखाकर टरका दिया जाएगा पर इस अवैध निर्माण का कुछ नहीं होगा। इस सारे खेल कि शुरुआत में पूर्व निर्धारित प्रकरण को बलदेव पहले से जानता था, जिसका इस्तेमाल उसने प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ साठगांठ कर सेट कर लिया था। अब काहे का नोटिस काहे की सीलिंग यह तो सिर्फ प्राधिकरण की मीडिया बाजी है दिखाने के लिए कुछ और अंदर खाने कुछ और, असल में सारा खेल टेबल के नीचे का है। अब प्राधिकरण के उपाध्यक्ष महोदय इस पर क्या बोलेंगे?
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गुच्चूपानी और नदी पर बने अवैध रिसॉर्ट्स और पूल-
गुच्चुपानी में संजीव अग्रवाल द्वारा बिना मानचित्र स्वीकृत रिसॉर्ट्स का संचालन किया जा रहा है जिसका आवासीय मानचित्र भी अस्वीकृत 3 साल पहले हो चुका है व भूमि भी एग्रीकलचर है साथ ही कई बीघे नदी की भूमि पर कब्ज़ा व निर्माण किया हुआ है। इन महोदय की प्राधिकरण के साथ सेटिंग भी तगड़ी है, जबभी इन पर सीलिंग या नोटिस की कार्यवाही किसी के शिकायत पर होती है तो ये महोदय भी तुरंत अपने मानचित्र को नए तरीके और नए नियम के मुताबिक प्राधिकरण में स्वीकृति हेतु डाल देते है और एमडीडीए द्वारा शिकायतकर्ता को ये कह कर लालीपॉप दे दी जाती है कि अभी उसका मानचित्र रिजेक्ट होने दो तब सील कर देंगे ।
खोजी नारद को सूत्रो से यह भी पता चला है कि नदियो पर बने अवैध रिसॉर्ट्स पर एमडीडीए का कोई अधिकारी कार्यवाई इसलिए नहीं करता क्यूकि यही रिसॉर्ट्स और होटल इनके मेहमानो की नवाज़ी के फ्री के और कमाई के सूत्र होते है। प्राधिकरण मे लगभग 20000 अवैध निर्माण की और उनकी वाद की फ़ाइल दशकों से कब्रों मे दफ़न हैं जिन्हे प्राधिकरण मे आने व जाने वाले अधिकारी जरूरतों के हिसाब से अपना मतलब सिद्धकर दोबारा उन कब्रों मे दफ़न कर देते हैं।
अब हाईकोर्ट दायर अवैध अतिक्रमणों वाली याचिका पर प्राधिकरण द्वारा सिर्फ हवाई खानापूर्ति कागजो मे उकेर कर प्रेषित कर दी जाती हैं जिसका सिरा हमेशा से भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियो के हाथ मे होता हैं। प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ख़ालिस पत्रकारों के कैमरो के सामने कुछ भी बोलने का दम नहीं रखते हैं क्योंकि उन्हें तो सिर्फ अपनी नौकरी करनी हैं और अपने आकाओ का हुक्म बज़ाना हैं। अपने पद के अनुरूप चलने वाले बड़े कम दु:साहसी अधिकारी उत्तराखंड मे बचे हैं ये सफ़ेद सच है इस राज्य में।
इस प्राधिकरण के बारे में तो यही लाइन मुफीद साबित होती है……. झाड़े रहो कलक्टर गंज, खिड़की खुली दरवाजा बंद…… अब चाहे उपाध्यक्ष बृजेश संत या कोई और खेल तो ऐसे ही चलेगा और चलता रहेगा, जिसको लिखना है लिख लो जिसको शिकायत करनी है कर लो होगा कुछ नहीं इस प्राधिकरण में, क्यूकि इनके अंदर की नैतिकता सिर्फ एक रेत का ढेर है जिसका उदाहरण ये अपने बच्चो को उसी रेत के ढेर में थोड़ा सी सीमेंट की चेपी लगाकर तरीके से ऐसा पाठ पढ़ाते है ताकि उनकी नजरों में उनका बाप ईमानदार बना रहे।
अगर वाकई में MDDA अपने फुल्ल फॉर्म में होता तो देहरादून को स्मार्ट सिटी की जरूरत नहीं पढ़ती और जो काम स्मार्ट सिटी में हो रहे है या होने है, वही काम एमडीडीए को करने थे, जो नहीं हुये । अब बृजेश संत जी अगर वाकई में आपका जमीर जिंदा है और अपने पद के लिए कर्तव्यनिष्ठा है तो आप सिर्फ उसका निर्वाहन ईमानदारी से अपने पद और उसकी प्रतिष्ठा से कीजिये, तभी आने वाली पीढ़ी को आप कोई ईमानदार उदाहरण दे पाएंगे।