हर साल 12 अक्टूबर को वर्ल्ड आर्थराइटिस डे मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य गठिया और इसके विभिन्न रूपों, तत्काल निदान और उपचार को लेकर लोगों में जागरूकता बढाना है।
इस वर्ष इस दिवस का विषय है, यह आपके हाथों में है, इस पर ध्यान दें। गठिया के कुछ लक्षणों में जोडों के आसपास लालिमा, दर्द, सूजन और जोडो में जकड़न शामिल है।
बढ़ती उम्र के साथ आर्थराइटिस का खतरा बढ़ता है। 60 वर्ष की अधिक आयु के लोगों में यह ज्यादा देखा जाता है।
बुजुर्गों में आर्थराइटिस यानि गठिया की समस्या बहुत आम है और लगभग 50 से 70 प्रतिशत मरीज किसी ना किसी प्रकार के मस्कुलोस्केलेटल रोग से पीड़ित है।
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कई बार आर्थराइटिस या गठिया से पीड़ित लोग जोड़ो में भीषण दर्द से जूझते हैं, दरअसल गठिया में बिगड़ते जोड़ों और आपस में रगड़ खाती हडि्डयों के कारण दर्द होता है।
आर्थराइटिस मरीज के जोड़ों की हडि्डयों के बीच के कार्टिलेज को खत्म करने लगता है। उम्र बढ़ने या बूढ़े होने से हमारे शरीर में कई शारीरिक बदलाव आते हैं।
ऑस्टियोआर्थराइटिस पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा कॉमन है। 65 वर्ष से अधिक आयु की लगभग 45 फीसद महिलाओं में इसके लक्षण होते हैं।
ये परिवर्तन आमतौर पर मांसपेशियों की ताकत, हड्डियों के घनत्व, शरीर के समन्वय में कमी का कारण बनते हैं और यहां तक कि जोड़ों को सख्त बना देते हैं, जिससे कभी-कभी गिरने और फ्रैक्चर हो सकते है। इस समस्या की समय से पहचान बेहद जरूरी है।
प्रो. अनूप सिंह के अनुसार आर्थराइटिस का इलाज संभव है। लगभग सभी इन्फ्लेमेट्री आर्थराइटिस ट्रीटेबल हैं। इसकी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित हैं, मगर रेगुलर फॉलो-अप जरूरी है।
फ़िज़ियोथेरेपी गठिया के मरीज़ों के जोड़ो में लचीलापन लाने के लिए बेहद फायदामंद रहता है। इसके शुरुआती लक्षणों को पहचानकर समय से इलाज लिया जाए तो किसी भी स्थायी डिसेबिलिटी से बचा जा सकता है।
उन्होंने बताया कि बीएचयू के सर सुंदर लाल चिकित्सालय में मंगलवार को गठिया की ओपीडी होती है। इससे बचने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित आहार लेकर जीवनशैली में बदलाव लाना जरूरी है।
उन्होंने लोगों से अपील की कि चूंकि वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक भी गठिया में योगदान करते हैं, इसलिए हमें अपने आसपास के वातावरण को साफ रखना चाहिए।
इस बारे में एम्स नई दिल्ली, गठिया रोग विभाग की प्रमुख डॉक्टर उमा कुमार ने बताया गठिया के इन लक्षणों वाले रोगियों को उचित उपचार के लिए डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि गठिया को नियंत्रित करने के लिए शारीरिक वजन पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि हर जोड का दर्द गठिया नहीं होता और सही इलाज मिलने से वो पूरी तरह ठीक हो सकता है।
बीएचयू में संचालित बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के नोडल अधिकारी प्रो. अनूप सिंह बताते है कि बढ़ती उम्र के साथ आर्थराइटिस का खतरा बढ़ता है।
60 वर्ष की अधिक आयु के लोगों में यह ज्यादा देखा जाता है। वर्तमान में अब तक 100 से अधिक विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस का पता लगाया जा चुका है।
इसमें कुछ सबसे प्रमुख हैं ऑस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटीइड आर्थराइटिस, सेप्टिक आर्थराइटिस, एंकिलॉज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस, जूवेनाइल आइडोपैथिक आर्थराइटिस और गाउट शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि ऑस्टियो आर्थराइटिस सबसे आम रुमेटोलॉजिकल समस्या है और यह भारत में 22 से 39 फीसद की व्यापकता के साथ सबसे बड़ी ज्वाइंट डिसीज है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा कॉमन है। 65 वर्ष से अधिक आयु की लगभग 45 फीसद महिलाओं में इसके लक्षण होते हैं, जबकि 65 वर्ष से अधिक उम्र की 70 फीसद महिलाओं में OA के रेडियोलॉजिकल प्रमाण दिखाई देते हैं।
कई रिपोर्ट्स में यह पाया गया है कि जो लोग अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं, उनमें आर्थराइटिस का खतरा ज्यादा होता है, खासकर घुटनों जैसे वजन वाले जोड़ों में।
आज के टाईम में दवाईयां उपलब्ध हैं उससे इसका इलाज पूरी तरह हो सकता है, लेकिन जरूरी यह है कि आप होने ही न दें गठिया की बीमारी को।
उसके लिए अपनी जीवनशैली को कंट्रोल करें। जिन मरीजों को आर्थराइटिस है, अगर दवाईयों के साथ-साथ वो योग भी प्रैक्टिस करते हैं, तो देखा यह गया है कि उनकी बिमारी दवाओं से जल्दी कंट्रोल हो जाती है और बाद में दवाओं की जो डोजे भी कम हो सकती हैं।