राजधानी देहरादून में हाल ही में एक दुर्घटना की घटना ने दून अस्पताल का दम तोड़ दिया, जिससे उन ग्रसित मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है – उन्हें अब कहां जाना चाहिए?
शिमला बाईपास पर हुई दुर्घटना एक व्यक्ति को चोट लगने के बाद, उसे 108 एम्बुलेंस तक पहुंचाने में बड़ी ही दिक्कतें आईं। अच्छे से संचालित एम्बुलेंस की न केवल दुर्घटना स्थल पर उपलब्धि थी, बल्कि वहीं एक बिना मेडिकल उपकरणों वाले ई-रिक्शा ने उस व्यक्ति को दूर अस्पताल चिकित्सकों के पास पहुंचाया।
संघर्ष ई-रिक्शा से लेकर अस्पताल तक:
इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में, व्यक्ति ने अस्पताल की इमरजेंसी तक पहुंचने के लिए अपनी ताक़त का इस्तेमाल किया।
हालांकि वहां पहुंचकर भी उसे और कई मुश्किलें झेलनी पड़ीं, क्योंकि व्यक्ति की चिकित्सकीय स्थिति को देखकर डॉक्टरों ने उसकी सहायता करने में देरी की।
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जख्मी मरीज ने बहुत दर्द झेलने के बाद भी इंतजार किया, जब वह आवश्यक चिकित्सा सेवाओं का लाभ नहीं ले पा रहा था।
सरकारी सिस्टम की सटीकता पर प्रश्न:
यह घटना दर्दनाक तथ्य को स्पष्ट कर रही है कि दून अस्पताल के आदर्श और सुविधाओं का वास्तविक उपयोग कितना हो रहा है।
इस घटना के प्रकट होने पर, लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या वे सरकारी सिस्टम से उम्मीद करने के बजाय किसी और विकल्प की खोज में हैं।
दून अस्पताल डॉक्टरों की इस घटना ने दिखाया कि लोगों की जान बचाने के लिए समय और तंतु पर सही चिकित्सा उपलब्ध नहीं होती है।
दुर्घटनाओं के पीड़ित व्यक्तियों को और भी संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जबकि उन्हें त्वरित चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता