इन्ही धार्मिक स्थलों में से एक है माँ धारी देवी का मंदिर।
माँ धारी देवी का यह पवित्र मंदिर बद्रीनाथ सड़क मार्ग पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है ।
600 वर्ष प्राचीन यह मंदिर श्रीमद देवी भागवत के अनुसार 108 शक्तिपीठों में से एक है।
मान्याताओं के अनुसार प्राचीन समय में धारी माता की मूर्ति बाढ़ से बह गई थी और धारी गांव के पास चट्टानों के बीच फंस गई थी।
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ऐसा माना जाता है कि धारी माता एक ग्रामीण के सपने में आयीं और उसे आदेश दिया कि वह उनकी मूर्ति को नदी से बाहर ले आए और मूर्ति को वहीं स्थापित कर दे जहां वह मिली थी और उसे खुले आसमान के नीचे रखा जाना चाहिए।
इस प्रकार, मंदिर को धारी देवी मंदिर के रूप में जाना जाता है।
यहाँ पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है।
उनके अनुसार, देवी का रूप समय के साथ बदलता है।
जिसे देखकर लोग हैरान हो जाते हैं।
वास्तव में मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है।
मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है।
धारी माता को उत्तराखंड में चार धाम की संरक्षक और रक्षक के रूप में भी माना जाता है।
मंदिर में मूर्ति देवी धारी देवी का ऊपरी आधा हिस्सा है और निचला आधा कालीमठ में स्थित है जहां उन्हें काली अवतार के रूप में पूजा जाता है।
वर्ष 2013 में अलकनंदा पावर प्लांट निर्माण के दौरान जून के महीने में देवी की मूर्ति को मूल स्थान से हटाकर हटाकर अलकनंदा नदी से लगभग 611 मीटर की ऊंचाई पर कंक्रीट के चबूतरे पर स्थानांतरित कर दिया गया था जिसके फलस्वरूप क्षेत्र को उस वर्ष भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा था।
बादलों के फटने के कारण उत्पन्न बाढ़ और भूस्खलन ने पूरे शहर व राज्य को क्षति पहुँचाई जिससे सैकड़ों लोग मारे गए थे।
भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना था कि यह हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए रास्ता बनाने के लिए मूर्ति को उसके ‘मूल स्थान’ से स्थानांतरित करने के कारण हुआ था।
स्थिति को भाँपते हुए , मंदिर प्रशासन द्वारा पिछले माह मंदिर के स्तंभ को उठाकर मूल गर्भगृह को ऊँचा उठाकर मूर्ति को वापस से पुजारियों द्वारा विधिवत स्थापित किया गया है।
श्रद्धालु माँ धारी देवी के दर्शन हेतु सालों भर आते हैं।
परंतु नवरात्रि के दौरान यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
चार धाम यात्रा के क्रम में श्रद्धालु चार धाम की संरक्षक और रक्षक माँ धारी देवी के दर्शन कर पुण्य का लाभ कमा सकते हैं और उनके समक्ष अपनी मनोवांछित इच्छा प्रकट कर उसे फलीभूत कर सकते हैं।
चार धाम यात्रा के दौरान श्रद्धालु पूरे यात्रा मार्गों में ऐसे ही अनेक पवित्र एवं अतिमहत्वपूर्ण धर्मस्थलों के दर्शन कर सकते हैं।
इस वर्ष की चार धाम यात्रा के लिए श्रद्धालुओं के पंजीकरण अनिवार्य रूप से किए जा रहे हैं।
21 फरवरी से अब तक 10 लाख से अधिक श्रद्धालु पंजीकृत किए जा चुके हैं।
इस बार सुगम व सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के क्रम में केवल पंजीकृत श्रद्धालुओं को ही धामों के दर्शन के लिए टोकन प्रदान किया जाएगा।
जिसके लिए केवल पंजीकृत श्रद्धालुओं को ही आगे की यात्रा जारी करने की अनुमति दी जाएगी।
जिसके लिए विभिन्न धामों के दर्शन हेतु उनका सत्यापन किया जाएगा।
केदारनाथ धाम के पंजीकृत श्रद्धालुओं के पंजीकरण का सत्यापन सोनप्रयाग में और बद्रीनाथ के पंजीकृत श्रद्धालुओं के पंजीकरण का सत्यापन पांडुकेश्वर में किया जाएगा।
वहीं गंगोत्री व यमुनोत्री के लिए श्रद्धालुओं का सत्यापन क्रमशः हिना व बड़कोट में होगा।
सत्यापन के पश्चात इन पंजीकृत श्रद्धालुओं को दर्शन हेतु टोकन प्रदान किया जाएगा।
जिनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ व गंगोत्री के श्रद्धालु इन्हीं धामों से टोकन प्राप्त कर पाएँगे, वहीं यमुनोत्री के श्रद्धालुओं को टोकन जानकीचट्टी में दिया जाएगा।